Saturday 7 March 2015

बीजेपी-पीडीपी गठबंधन: समर्पण या समझौता?



एक बाबाजी की कहानी मैंने कई बार सुनी है, कहानी कुछ इस तरह हैएक प्रसिद्ध बाबाजी थे, घर-बार और पत्नी को बाबाजी शादी के तुरंत बाद ही त्याग चुके थे। अब तो मस्ती में इधर से उधर घूमते और दिन-रात बस देश-दुनिया की भलाई की चिंता करते थे। ऐसे ही एक दिन बाबाजी अपनी मस्ती में कहीं जा रहे थे, कि उसी वक्त पीछे से (यानि जिस दिशा में बाबाजी जा रहे थे, उसी दिशा में) बहुत तेज हवा चलने लगी। हवा के कारण बाबाजी की जटा के बाल उड़कर आँखों और मुँह पर आने लगे, बाबाजी बार-बार धैर्यपूर्वक बाल पीछे करते रहे लेकिन हवा के आगे उनकी एक चली। आखिर परेशान होकर बाबाजी मुड़े और विपरीत दिशा में मुँह करके  खड़े हो गए।अपने को क्या है, अपने को तो कहीं--कहीं चलना ही है”, ये शब्द बड़बड़ाते हुए बाबाजी फ़िर से उसी मस्ती में हवा की विपरीत दिशा में चल पड़े।

हमारे देश के नेता भी इन्हीं बाबाजी की तरह हैं, जिधर राजनीति की हवा अनुकूल लगती है, उधर ही चल पड़ते हैं, ना अपने तथाकथित आदर्शों की परवाह करते हैं और ना भूतकाल में की गई बड़ी-बड़ी बातों की। इसी हवा का नतीजा है कि कोई अपने बच्चों की झूठी कसम खाता है, तो कोईलुटेरे बाप-बेटेऔर Naturally Corrupt Party” के नेताओं की शादी में शामिल होता है। एक नेता के  ही शब्दों में कहें तो “नेताओं का सिर्फ़ एक ही धर्म होता है – कुर्सी फ़र्स्ट, नेताओं को और कोई रंग नहीं दिखता, सिर्फ़ सत्ता का रंग दिखता है”। ये तथ्य थोड़ा कड़वा जरूर है, लेकिन है सोलह आने 
सच।

मोदी और शाह भी ऐसे ही नेता हैं, इन्हें ना शरद पवार से समर्थन लेने से परहेज है और ना जीतन राम माँझी को देने से। इसलिए जब बीजेपी ने धारा 370, अलगाववादियों और AFSPA पर अपने कदम पीछे खींचकर पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की घोषणा की तो मुझे जरा भी हैरानी नहीं हुई, हैरानी हो रही है तो उन भक्तों पर जो येन-केन-प्रकारेण इस सरकार को अमित शाह की चाणक्य-बुद्धि का मास्टरस्ट्रोक साबित करने पर तुले हुए हैं। ढूँढ ढूँढ कर ऐसी-ऐसी थ्योरीज निकाली जा रहीं हैं जो खुद अमित ‘चाणक्य’ भाई शाह और मोदी के भी पल्ले नहीं पड़ें।
       
इसे बीजेपी का पीडीपी के आगे पूर्ण समर्पण ही कहा जायेगा, डील या समझौता तो तभी कहा जाता जब थोड़ा पीडीपी झुकती और थोड़ा बीजेपी, लेकिन अभी तक तो बीजेपी पीडीपी के सामने नतमस्तक दिखाई दे रही है। सत्ता में आनें का बीजेपी को नैतिक और संवैधानिक अधिकार है क्योंकि पीडीपी के बाद जम्मू और कश्मीर में वही दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन इस कदर पीडीपी की मांगों के आगे पूर्ण समर्पण कर देना कहीं से भी उचित नहीं है। मात्र तीन दिन के अंदर पीडीपी के गिरगिटों ने, पाकिस्तान और अलगाववादियों को “शांतपूर्वक चुनाव होने देने” के लिए धन्यवाद देकर और आतंकी अफ़जल का शव मांगकर, अपना असली रंग दिखाना शुरु कर दिया है। बीजेपी को याद रखना चाहिए कि जिस प्रकार सांप को दूध पिलाने से सांप वफ़ादार नहीं बन जाता, उसी प्रकार बीजेपी चाहे कुछ भी करे, वो कुछ पाकिस्तान-प्रेमी कश्मीरियों का दिल नहीं बदल सकती। अगर मोदी सोच रहे हैं कि बीजेपी को रकार में शामिल करवाकर वो ‘भटके हुए’ कुछ कश्मीरियों को मुख्यधारा में शामिल कर पाएंगे तो उन्हें जान लेना चाहिए कि सूअर को गंगा नहला देने से वो इंसान नहीं बन जाता, उसे तो वापस कीचड़ में ही लौटना है।

    
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