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Tuesday, 12 January 2016

The Intellectuals

                

In recent times, the dictionary definition of the word ‘intellectual’ has proved to be completely wrong. Literally, this word means a person who uses his mind to think rationally. But the society’s definition is the exact opposite of the literal meaning. In India, persons who use the most illogical arguments, endorse anything but the rational, propagate absurd theories, write ludicrous articles and senseless books are labelled as intellectuals.

The society’s intellectuals hardly have any idea of the ground realities, rarely provide solutions to problems and never speak the truth. Spreading lies, distorting facts are the key traits of Indian intellectuals. They live in a self-induced ambience where they believe that anyone or anything rational is their enemy. They scare the public by talking about the dangers of imaginary threats but ignore the real ones.

Think about the last time you saw the word intellectual written with a person’s name (it might be a newspaper article or a debate on TV). Now google that person’s profile. In all likelihood, you will find that they support Naxals, oppose any kind of development, sign mercy petitions for terrorists, hate a particular religion, and believe in hate-anything-that-is-Indian. But above all, you will find that they are shameless hypocrites who don’t have any morals and have lost all self-respect. If you don’t remember any such name, google search for “Indian intellectuals”. ‘Anti-India’, ‘hate’, ‘fear’, and ‘intolerance’ are some of the key words on the first page.

This behaviour of the so-called intellectuals is not limited to India. This breed of humans is found everywhere. The below paragraph is quoted from Atlas Shrugged. Here, some fraudsters who have expropriated governmental powers via trickery are contemplating the implementation of a national emergency to escalate their loot. One of them wonders whether the intellectuals would pose any problems. Someone answers: 

"They won't, your kind of intellectuals are the first to scream when it's safe—and the first to shut their traps at the first sign of danger. They spend years spitting at the man who feeds them—and they lick the hand of the man who slaps their drooling faces. Didn't they deliver every country of Europe, one after another, to committees of goons, just like this one here? Didn't they scream their heads off to shut out every burglar alarm and to break every padlock open for the goons? Have you heard a peep out of them since? Didn't they scream that they were the friends of labor? Do you hear them raising their voices about the chain gangs, the slave camps, the fourteen-hour workday and the mortality from scurvy in the People's States of Europe? No, but you do hear them telling the whip-beaten wretches that starvation is prosperity, that slavery is freedom, that torture chambers are brother-love and that if the wretches don't understand it, then it's their own fault that they suffer, and it's the mangled corpses in the jail cellars who're to blame for all their troubles, not the benevolent leaders! Intellectuals? You might have to worry about any other breed of men, but not about the modern intellectuals: they'll swallow anything. I don't feel so safe about the lousiest wharf rat in the longshoremen's union: he's liable to remember suddenly that he is a man—and then I won't be able to keep him in line. But the intellectuals? That's the one thing they've forgotten long ago. I guess it's the one thing that all their education was aimed to make them forget. Do anything you please to the intellectuals. They'll take it.”

Two entirely different cultures of different time periods have the same description of intellectuals: hypocrites who hate anything that is rational. The original meaning has been distorted to such an extent that it would be better to change its dictionary definition so as to eliminate any confusion regarding the type of person intellectuals are.   


Saturday, 7 March 2015

बीजेपी-पीडीपी गठबंधन: समर्पण या समझौता?



एक बाबाजी की कहानी मैंने कई बार सुनी है, कहानी कुछ इस तरह हैएक प्रसिद्ध बाबाजी थे, घर-बार और पत्नी को बाबाजी शादी के तुरंत बाद ही त्याग चुके थे। अब तो मस्ती में इधर से उधर घूमते और दिन-रात बस देश-दुनिया की भलाई की चिंता करते थे। ऐसे ही एक दिन बाबाजी अपनी मस्ती में कहीं जा रहे थे, कि उसी वक्त पीछे से (यानि जिस दिशा में बाबाजी जा रहे थे, उसी दिशा में) बहुत तेज हवा चलने लगी। हवा के कारण बाबाजी की जटा के बाल उड़कर आँखों और मुँह पर आने लगे, बाबाजी बार-बार धैर्यपूर्वक बाल पीछे करते रहे लेकिन हवा के आगे उनकी एक चली। आखिर परेशान होकर बाबाजी मुड़े और विपरीत दिशा में मुँह करके  खड़े हो गए।अपने को क्या है, अपने को तो कहीं--कहीं चलना ही है”, ये शब्द बड़बड़ाते हुए बाबाजी फ़िर से उसी मस्ती में हवा की विपरीत दिशा में चल पड़े।

हमारे देश के नेता भी इन्हीं बाबाजी की तरह हैं, जिधर राजनीति की हवा अनुकूल लगती है, उधर ही चल पड़ते हैं, ना अपने तथाकथित आदर्शों की परवाह करते हैं और ना भूतकाल में की गई बड़ी-बड़ी बातों की। इसी हवा का नतीजा है कि कोई अपने बच्चों की झूठी कसम खाता है, तो कोईलुटेरे बाप-बेटेऔर Naturally Corrupt Party” के नेताओं की शादी में शामिल होता है। एक नेता के  ही शब्दों में कहें तो “नेताओं का सिर्फ़ एक ही धर्म होता है – कुर्सी फ़र्स्ट, नेताओं को और कोई रंग नहीं दिखता, सिर्फ़ सत्ता का रंग दिखता है”। ये तथ्य थोड़ा कड़वा जरूर है, लेकिन है सोलह आने 
सच।

मोदी और शाह भी ऐसे ही नेता हैं, इन्हें ना शरद पवार से समर्थन लेने से परहेज है और ना जीतन राम माँझी को देने से। इसलिए जब बीजेपी ने धारा 370, अलगाववादियों और AFSPA पर अपने कदम पीछे खींचकर पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की घोषणा की तो मुझे जरा भी हैरानी नहीं हुई, हैरानी हो रही है तो उन भक्तों पर जो येन-केन-प्रकारेण इस सरकार को अमित शाह की चाणक्य-बुद्धि का मास्टरस्ट्रोक साबित करने पर तुले हुए हैं। ढूँढ ढूँढ कर ऐसी-ऐसी थ्योरीज निकाली जा रहीं हैं जो खुद अमित ‘चाणक्य’ भाई शाह और मोदी के भी पल्ले नहीं पड़ें।
       
इसे बीजेपी का पीडीपी के आगे पूर्ण समर्पण ही कहा जायेगा, डील या समझौता तो तभी कहा जाता जब थोड़ा पीडीपी झुकती और थोड़ा बीजेपी, लेकिन अभी तक तो बीजेपी पीडीपी के सामने नतमस्तक दिखाई दे रही है। सत्ता में आनें का बीजेपी को नैतिक और संवैधानिक अधिकार है क्योंकि पीडीपी के बाद जम्मू और कश्मीर में वही दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन इस कदर पीडीपी की मांगों के आगे पूर्ण समर्पण कर देना कहीं से भी उचित नहीं है। मात्र तीन दिन के अंदर पीडीपी के गिरगिटों ने, पाकिस्तान और अलगाववादियों को “शांतपूर्वक चुनाव होने देने” के लिए धन्यवाद देकर और आतंकी अफ़जल का शव मांगकर, अपना असली रंग दिखाना शुरु कर दिया है। बीजेपी को याद रखना चाहिए कि जिस प्रकार सांप को दूध पिलाने से सांप वफ़ादार नहीं बन जाता, उसी प्रकार बीजेपी चाहे कुछ भी करे, वो कुछ पाकिस्तान-प्रेमी कश्मीरियों का दिल नहीं बदल सकती। अगर मोदी सोच रहे हैं कि बीजेपी को रकार में शामिल करवाकर वो ‘भटके हुए’ कुछ कश्मीरियों को मुख्यधारा में शामिल कर पाएंगे तो उन्हें जान लेना चाहिए कि सूअर को गंगा नहला देने से वो इंसान नहीं बन जाता, उसे तो वापस कीचड़ में ही लौटना है।

    

Friday, 13 February 2015

गर्लफ़्रेंड ना बना पाने से निराश छात्र हुआ बज़रंग दल में शामिल, अब करेगा वैलेंटाईन डे का विरोध


ज़ैसे जैसे वैलेंटाईन डे नजदीक आ रहा है, आइएसएम के छात्रों में नैतिकता और राष्ट्रवादिता का संचार हो रहा है। इन्हीं भावनाओं के वशीभूत होकर द्वितीय वर्ष के छात्र हनुमान प्रसाद ने बीते शनिवार को बजरंग दल की सदस्यता ग्रहण की। सूत्रों के मुताबिक हनुमान प्रसाद पिछले 15 सालों से अपने लिए एक गर्लफ़्रेंड की तलाश कर रहा था, लेकिन आज तक उसे अपने प्रयासों में कोई सफ़लता नहीं मिली। हर बार 14 फ़रवरी का बेसब्री से इतंजार करने वाले हनुमान को इस बार जाके अपने प्रयासों की व्यर्थता का बोध हुआ।

Hanuman Prasad's profile picture

हालांकि हनुमान की उम्मीदें इस बार भी 12 तारीख तक वर्चुयल कैंडी, रोज़, ग्रीटिंग कार्ड और टेडी जैसी चीज़ों के सहारे जिंदा थी, लेकिन जब हनुमान ने अपने आस-पास के सभी चुन्नू-मुन्नू और झन्डुओं को उनकी गर्लफ़्रेंड के साथ देखा तो उसके दिल पर गहरा आघात लगा। और इन्हीं झन्डुओं से बदला लेने के लिए हनुमान प्रसाद ने बजरंग दल में शामिल होने का निर्णय लिया। हनुमान को उम्मीद है कि इन committed लड़के-लड़कियों को सबक सिखाने के बहाने वो पिछले 15 सालों से अपने दिल में छिपे गुबार को बाहर निकाल पाएगा।



बजरंग दल की आइएसएम इकाई के संयोजक नितेशानन्द दत्तात्रेय ने बताया कि बजरंग दल के दरवाजे उन सभी छात्रों के लिए खुले हैं जिनके पास 14 फ़रवरी को करने के लिए कुछ नहीं है। 14 फ़रवरी के दिन ऐसे छात्रों को हाथ में जूते-चप्पल देकर Ruby lane, Main Canteen, Library और SAC में तैनात कर दिया जाएगा ताकि ये लड़की के साथ दिखाई देने वाले लौंडों की GPL कर सकें। स्वामी दत्तात्रेय के अनुसार बजरंग दल में शामिल होने वाले सभी छात्रों को भारतीय संस्कृति के पहरेदार और राष्ट्रवादी होने का प्रमाण-पत्र भी दिया जाएगा।        

First written for ismdiaries.com

Monday, 22 December 2014

#IndiaWithPakistan or #IndiaWithKids

Disclaimer: This article can hurt (pseudo)secular sentiments and pro-Pakistan feelings of some persons. Proceed on your own discretion.

Just after the brutal killings of innocent kids of an army school of Peshawar by some suicidal psychopaths of Tahrik-E-Taliban (TTP), social media was instantaneously flooded (and is flooded till now) with messages of sympathy and support to the deceased children and their families. Needless to say, most of this overwhelming reaction came from the keyboards of Indians. Many ultra-(pseudo)secular senior journalist like Bachi Kakaria and Nikhil Wagle, who bake their breads by instigating and propagating hatred against RSS, also found sufficient material from this massacre to post some tweets linking these atrocious killings to Hindu organizations of India (Don’t stress your brain to find out any logic in their statements, the word ‘logic’ is not present in their dictionaries.)


Due to the enormous amount of empathy shown by Indians, #IndiaWithPak has become the most popular and trending hashtag of twitter. #IndiaWithPak is cute and dangerous at the same time. Cute, because the modern ISI – ‘Indian Secular Intelligentsia’ has again come out of its grave with the help of this hashtag. This hashtag serves them two purposes – First, it acts as a shield to avoid condemning the inhumane organizations of terrorists flourishing in Pakistan with the help of Pak government, army and the old ISI. Second, it acts as a weapon for them to expose the creation of their own mind - ‘Hindu Terrorism’ and ‘Hindu Taliban’ in India. And it does not stop here. They tell the world that the level of religious fanaticism and bigotry of ‘Hindu Taliban’ is far worse and more dangerous than the original Taliban. Their theories and arguments are outside the scope of my intellectual understanding. They probably think that RSS or any Hindu organization should now attack Army School, Patiala to maintain the ‘secular fabric’ of the world! But in spite of this kind of wicked ideology, I don’t see any real danger from the modern ISI, because they are already dead before they could turn into some real danger – thanks to the young generation of Indians who are no more falling prey to the ISI ideology.


The real dangerous thing is that we have yet again failed to distinguish between the ‘innocent Pakistani victims’ and the nation ‘Pakistan’. For the entire world, Pakistan is a synonym for ‘hell’! ‘Pakistan as a nation’ means the cosiest abode of most cruel humans – terrorists. ‘Pakistan’ means the primary patron of terrorists. Pakistan means the nation where the government, army, and intelligence agencies use terrorist whenever and wherever it suits them. Pakistan means the land where many of our most dangerous enemies are roaming freely. Pakistan means the streets where Hafiz Saeed – the master-mind of the cruellest terrorist attacks on India, more brutal and stronger in impact than the Peshawar attacks – 26/11, regularly organizes rallies and incites hatred against India. Pakistan means a nation having pitiless army which recently chopped off the head of one of our soldier, the only fault of his was that he was an Indian. Pakistan means a treacherous neighbour, who repeatedly violates ceasefire and wages wars against us without any reason at all. 

‘Pakistan as a nation’ is not worthy of this kind of support and sympathy. Yes, there are some Pakistani citizens who have nothing to do with all this. But this bunch of good people doesn’t represent entire ‘Pakistan’. Pakistan is a compound of India-haters, notorious terrorists, treasonous army, anti-India government, intelligent agencies ‘and’ some common people. Therefore, #IndiaWithPakistan is egregious, anti-national and shameful for a patriotic and humanitarian Indian. Why not think of something other, why not show your support to the deceased children and write ‘#IndiaWithKids’, and why not ‘#IndiaWithHumanity’? I don’t understand why Indians are afraid of condemning Taliban, terrorists and the Pakistan government. Why not ‘#ShameOnTaliban’, ‘#EndTerrorism’ or ‘#ShameOnPakGovernment’. 


There are tens of other hashtags, use them, but don’t use ‘#IndiaWithPakistan’, because when you write ‘With Pakistan’, you are indirectly supporting the same terrorists who murdered the innocent kids.   


Pakistan is an enemy of India.

India should not support Pakistan.

Friday, 12 December 2014

12 Students Suspended for Celebrating Birthday without GPL

 GPL in ISM Dhanbad    GPL in engineering
In a huge shock to the whole engineering fraternity, 12 students of ISM (Institute of Single Males) celebrated a birthday without GPL. The college authorities took immediate notice of this shocking act and suspended everyone involved in the birthday celebration.

This stunning event took place on the birthday of Padhaku Teja - the notorious 10 pointer of the college. It was around 11:50 pm when Lallan Jha2 – the GPL specialist of ISM who has successfully performed GPL of more than 400 students, set out on his daily birthday/GPL hunt. When Jha2 finally reached Maggu Wing, he heard some strange voice of “Happy birthday to you” coming from a room. Stimulated by this opportunity, Jha2 rushed to the room but he was left mind-blown when he peeked inside the room.


Instead of preparing for GPL, students were greeting Padhaku and were eagerly waiting to cut the cake. However, Jha2 took pity on the starved students and decided to wait outside the room. After 10-15 minutes, all the students came out of the room and started dancing to the tunes of Honey Singh’s Volume-1. Still seeing no signs of GPL, Jha2 completely lost his mind and went to call his friends.
Jha2 returned with his 5 friends. They all had leather belts and chappals in their hands. Padhaku saw them coming. Sensing their bad motives, he immediately ran from the place. Jha2 and his friends followed him but they couldn’t catch him. For the entire night, they searched every room of the hostel but remained unable to find Padhaku. Jha2 couldn’t endure this blow on his self-respect; next morning, he went to the dean office and narrated this inhumane act in detail.

“What! ....... How? ............ How could they ……?” was the reaction of the surprised dean. “At first I didn’t believe him, how can any student leave the golden chance of beating his friend?” the dean told our reporters, “but then Jha2 requested me to myself check Padhaku’s body”. After that, dean himself went to Padhaku’s room and minutely examined his body parts. Not finding any mark of GPL, the dean asked Jha2 the names of everyone present in Padhaku’s room that night. Dean first called the parents of the students and informed them about the in-disciplinary acts of their children. Then he issued an order suspending the students. “These students are a blot on the face of engineering, what message do they want to give to society?” said the dean.


Meanwhile, some of the suspended students told our reporters the reasons for abstaining from Padhaku’s GPL. “I had not eaten anything for the last 15 days, I was surviving on only RD's tea. Padhaku had threatened me not to give any piece from the birthday cake if I were to forcefully do his GPL,” said one of the suspended students while justifying his acts.


PS: I wrote this article for ismdiaries.com. GPL culture in IITs and ISM Dhanbad. What is GPL?

      

Saturday, 15 November 2014

स्वच्छ भारत नौटन्की

बेचारे नरेंद्र मोदी जी ने बड़ी उम्मीदों के साथ स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी, शायद जापान और अमेरिका की सड़कें देखने के बाद मोदी जी को लगा कि हमारे देश की पान से सनी सड़कें, पेशाब से गीली दीवारें और मानव मल से घिरी हुई रेल पटड़ियाँ भी इन विदेशी शहरों की तरह चमचमा सकती हैं... और इन्हीं सपनों को देखते हुए मोदी जी ने स्वच्छ भारत अभियान की घोषणा कर दी …यह सोचते हुए कि अगर 120 करोड़ भारतीय ठान लें तो भारत क्या पूरी दुनिया भी जापान, शंघाई और न्यु-योर्क की तरह चमक सकती है … अभियान भी कुछ ऐसा था कि मोदी का कोई बड़े से बड़ा राजतीनिक, धार्मिक या वैचारिक विरोधी चाहकर भी इस अभियान का विरोध नहीं जुटा पाता… शायद ये अभियान 120 करोड़ लोगों को अपने पक्ष में करने का मोदी का मास्टर स्ट्रोक था…और हुआ भी तकरीबन कुछ वैसा ही,  मोदी के कट्टरतम विरोधी नौटन्की सरदार केजरीवाल को भी इसका समर्थन करना पड़ गया और इसके साथ ही बेचारे उन आपियों को भी मोदी का समर्थन करना पड़ गया जो मोदी की तारीफ़ करने की बजाय टट्टी ख़ाना ज्यादा पसंद करते हैं…लोगों में उदाहरण पेश करने के मकसद से मोदी ने गांधी जयन्ती के दिन खुद सफ़ाई करके इस अभियान की शुरुआत की                                                                                                                                                                                                         

लेकिन एक सबसे बड़ी गलती जिसके कारण एक अच्छे - खासे अभियान का सत्यानाश हो गया, वो भी मोदी ने उसी दिन कर डाली…वो गलती थी अपना फोटो ख़ींचके फ़सबुक पे डालना और आईस बकेट की तर्ज पर 9 लोगों को चैलेंज करना ………………उसके बाद तो हमारी दिखावापसंद जनता को फोटो ख़िंचाने और लाईक पाने  का नया बहाना मिल गया                                                                                                                                                                                                                                              
…बाजार में झाड़ू और बाँस के बम्बूओं की माँग 1000 गुना बढ गयी और जब लोगों का जोश थोड़ा ठन्डा हुआ तो फ़ोटो खिंंचाने के मोर्चे को नेताओं ने                                                                                                                  संभाल लिया……                                                                                                                                                                                                                       इन हेमा मालिनी जी को झाडू लगाते हुए सुरक्षा चाहिए ,शायद इनके साफ़-                                                      सुथरे चिकने गालों को गन्दे लोगों से खतरा है                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                              बेचारे प्रकाश जावड़ेकर जी ने अपने आस-पास कूड़ा ढूँढने की बहुत कोशिश की, साथ में 60 - 70 आदमियों और मीडिया वालों कू भी बुलाया गया लेकिन अफ़सोस की कूड़ा फ़िर भी नहीं मिला                                                                                                                                                                                                       यहाँ तक तो फ़िर भी ज्यादा रायता नहीं बिखरा था लेकिन जब लोगों ने पहले खुद कूड़ा बिखरा कर सफ़ाई करनी चालू की तो सबको लगने लगा कि पानी सर से उपर जाने लगा है   इंडिया इस्लामिक सेंटर ने कितनी सफ़ाई से कूड़ा बिखराया और फ़िर बीजेपी के नेताओं ने उसे साफ़ करके सेक्यूलर बनने की कोशिश की                                                                                                                                                               
तकरीबन मुर्दा हो चुके इस अभियान में मोदी जी ने फ़िर से नई जान फूँकने की कोशिश की ………बनारस जाकर घाट की सफ़ाई की………खुद  9 तन्सले गाद भी उठाई…                                                                                                                                                                …………… लेकिन अब शरद पवार ने इस अभियान के ताबूत में अंतिम कील  ठोंक दी है


 इम्पोर्टीड झाड़ु से शरद पवार जी शायद कुछ अदृश्य जीवाणु या कीटाणुओं को साफ़ करने की कोशिश कर रहे हैं




  एक बार फ़िर एक और अच्छे से सोची गयी …नेक नीयत की योजना इन नौटंकीबाज नेताओं, फ़ेसबुकियों और सिस्ट्म की भेंट चढ गयी

Tuesday, 29 July 2014

Does India need new IITs? Is it quality vs. quantity?


The announcement of Indian government to open five more new IITs has created a buzz among people. Most of the common people are seeing it as a decision to eradicate the dearth of quality higher education technical institutes, for odds of a student getting a seat in any of the IITs and ISM, Dhanbad is less than 0.8% (not to forget some new IITs, which by no means, can be called ‘Quality Institutes’). On the other hand, most of the students and alumnus are comprehending this decision it as a threat to the brand IIT.


Many people are contemplating this decision as quality versus quantity. Some are saying that the sheen of brand IIT will tarnish because now less intelligent, less talented and low-ranked students will get the prestigious IITian tag. But is it really true? Do IITs still flourish the most brilliant minds of our country?  Do all IITians still have the same veneration and status in society as they had had only 7-8 years ago? Answer to all these questions is NO. Chances of getting admission in an IIT are infinitely increased if you are born in some particular caste. 50% students of IITs are from reserved categories. One may simply understand by looking at cut-offs that these 50% students are not that talented and are not of the level of general category students. One may argue about their hidden and creative talent or their passion and desire of getting admission in IITs, but the fact is they have not been able to match the performance of the rest 50% students. The selection criteria are completely different depending on one’s caste. Would these 50% students ever get a chance of studying in IITs had they not been born in their caste? A student getting 70 marks, another one getting 120 and a more hard-working student getting 170 marks study the same course in the same institute, but a student getting 150-155 doesn’t get admission anywhere. Where is the quality in all this process?


Quality is a very nice word to read. India really needs quality in every zone if it is to become a developed nation. But the policy-makers of our country don’t like this very word. They have been preferring caste over quality from the time the caste based politics came into existence. All that matters to them is appeasement of castes or categories and vote bank, and it’s not going to change till the end of caste based politics. Many people who work hard do not get what they desire only because they have taken birth in General Category. But the people who have less knowledge, work less and consequently perform worse eat the cake baked by others.


Keeping in mind that quality is not the first priority to grab a seat in a good institute or land a government job, we should now think again over this decision. If more Institutes are opened or more jobs are created, more talented people who have not got any dais to unveil their potential due to their caste will be benefited. By that way some reserved categories will definitely get seat or job after scoring even lesser marks, but that should not bother much. We should make sure that not a single talent is wasted even if we are obliged to include some less talented ones. This is not limited to the context of opening educational institutes, but it is valid for every area where caste overshadows talent.


Quality has already been diluted to such an extent that increasing quantity will do no further harm to it. But increasing quantity would provide opportunities to unfairly treated sections/General Category of our society.

Tuesday, 24 June 2014

मरने के बाद भी अरबों कमा रहा है यह शख्स

तकरीबन 450 करोड़ की सालाना कमाई , 65 करोड़ के गहने और 647 करोड़ का बैंक बैलेंस
जी हाँ ये कमाई किसी व्यापारी की ही है ,आपको जानकर हैरानी होगी कि ये आदमी आज से काफ़ी पहले ही मर चुका है और इसे मरे हुये कोई 1-2 साल नहीं बल्कि पूरे 96 साल हो चुके हैं | इस आदमी ने अपनी पूरी जिंदगी में लोगों को मुर्ख बनाकर रूपये कमाने की हर-संभव कोशिश की और हर कोशिश असफ़ल रही, लेकिन जो काम ये आदमी अपने जिंदा रहते नहीं कर पाया वो काम इसके जाने के बाद कुछ लोगों ने सिर्फ़ इसके नाम और इसकी कब्र से ही कर दिया । आज़ भी ये शख्स अपनी कब्र में बैठ कर रोता है और इस बात का अफ़सोस करता है कि इसके वक्त में ना तो कोई मीडिया थी, ना ही कोई टीवी चैनल था और ना ही कोई फ़िल्में बनती थीं |
मरने के बाद अरबपति बनने वाले इस अजीबो-गरीब शख्स का असली नाम है चाँद मोहम्मद , हांलाकि कुछ लोग इसे साई बाबा के नाम से भी जानते हैं; जी हाँ , वही शिरडी वाले साई बाबा , वही जिनकी एक फोटो पर फ़ेसबुक पर मिनटों में लाखों लाइक आ जाते हैं ,वही जिनके बारे में  आपको फ़िल्म , सीरियल या फ़िर न्यूज चैनल देखकर पता चला |
चाँद मोहम्मद उर्फ़ साई बाबा को देवता,महापुरूष , भगवान या और कुछ भी मानने वाले लोगों को आखिर इसके बारे में कैसे पता चला ?बहुत से साई को हज़ारों साल पहले का प्राचीन सँत मानते हैं , आधे से ज्यादा साई भक्तों को तो ये भी नहीं पता कि साई की मृत्यु हुए अभी पूरे 100 साल भी नहीं हुये हैं |तो फ़िर लोगों को इसके बारे में  कैसे पता चला ? इस सनके पीछे साई ट्रस्ट की जबरदस्त मार्केटिंग है , साई  के नाम को लोगों में बैठाने कि लिये पहले तो इन्होनें साई की फ़िल्में बनवाईं और फ़िर साई को पूरी तरह लोगों के दिमाग में उतारने के लिये साई के सीरियल बनवाये गये ।
साई के सीरियल का सीधा असर आप साई की मज़ार की कमाई में देख सकते हैं , 2004 में साई बाबा के सीरियल से पहले इसकी कमाई मात्र 30 करोड़ सालाना थी , वहीं सीरियल के प्रसारण के बाद 2010 में कमाई बढकर 300 करोड़ सालानाहो गई और अब तो न्यूज चैनलों और कुछ फ़िल्मी सितारों के सहयोग के बाद ये कमाई 500 करोड़ के पास पहुँच गयी है
दरअसल साई का नाम बेचने वाले व्यापारियों ने हिन्दूओं में बड़ी आसानी से लग जाने वाले सेक्यूलरिज्म नामक रोग की पह्चान कर ली है ,हिंदू-मुस्लिम एकता के नाम पर  ये लोग हिन्दूओं के नरम और उदारवादी स्वभाव को  भुनाने में लगे हैं |
आज हर दो कदम पर नये-नये ढोंगी और पाखंडी बाबा बने बैठे हैं , ये रोज़ अपने अनुयायियों के लिये नये-नये नियम बनाते हैं , कोई शिवलिंग की पूजा करने और घर में रखने से मना करता है तो कोई लाल किताब और लोकेट से सबके दुख दूर  करने का दावा करता है । इन सबका एकमात्र कारण हिन्दू धर्म का अति-उदारवादी होना है । ये पाखंडी ऐसे-ऐसे उपाय बताते हैं जिनका दूर-दूर तक हिन्दू धर्म और देवी-देवताओं से कोई लेना-देना नहीं है । लाख समझाने के बाद भी लोग निर्मल बाबा जैसे पाखंडियों के चक्कर में पड़ते हैं , आज़ भी निर्मल बाबा के ज्यादातर समागमों की बुकिंग तकरीबन एक महीना पहले ही बन्द हो जाती है ।
 दरअसल इस देश की आबादी और इस आबादी की समस्याएँ दोनों ही इतनी ज्यादा हैं कि चाहे किसी भी धर्म का कोई भी बाबा कैसे भी नुस्खों के साथ अपना व्यापार खोल ले कुछ न कुछ अन्धभक्त अनुयायी तो उसे मिल ही जायेंगे और अगर मार्केटिंग अच्छे से की जाए तो ये कारोबार कुछ ही सालों में करोड़ों और फ़िर अरबों रुपयों का हो जाता है ।
कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर आज से 30-40 साल बाद निर्मल बाबा  साई बाबा से भी बड़ा भगवान बन जाये
अन्त में एक और मज़ेदार बात ->  आप भी भी 10 लोगों का ट्रस्ट बना कर कहीं पत्थर की मूर्ति रखकर कोई मन्दिर बना दीजिये और उसके बाद जो भी चढावा आयेगा वो सब आपका होगा |
(कमाई के आँकड़े आप google पर भी चेक कर सकते हैं)

 साई के भक्तों को मेरी खुली चुनौती
shirdisaiexpose.wordpress.com 

An Open Challenge To All Sai Baba Devotees


Reality of  Shirdi Sai Baba
Shirdi Sai Exposed
क्या साई बाबा का कोई भक्त मेरे इन सवालों का जवाब दे सकता है
साई के भक्तों को मेरा खुला चैंलेज है , अगर कोई भी साई भक्त मेरे इन सवालों का जवाब दे तो मैं भी साई बाबा को भगवान मानने लग जाऊँगा
1) पूरी जिन्दगी एक मस्जिद में रहने वाला और हर बात में 'अल्लाह मालिक' दोहराने वाला एक जिहादी मुस्लिम आखिर हिन्दूओं का भगवान कैसे हो गया ?
2) आखिर वो कौन सा काम है जो राम ,कृष्ण ,शिवजी  और  हनुमान पुरा नहीं कर सकते लेकिन एक अनपढ मुस्लिम भिखारी कर सकता है ?
3) साई सत्चरित्र अध्याय 4,7,11,14,28 और 38 पर साफ़-साफ़ लिखा है कि साई एक मांसाहारी व्यक्ति था , आखिर हिन्दू  धर्म में आज तक ऐसा कौन सा भगवान है जो निर्दोष जानवरों का माँस खाता था ?
4) किसी के अंतिम संस्कार में शामिल होने पर तो हिन्दू घर आते ही नहाते हैं  तो इस साई की कब्र और मज़ारों की पूजा क्युँ ?
5) साई के समय में शिरडी के आस-पास के जिलों में भयंकर  अकाल पड़ा , अगर साई भगवान था तो उसने अकाल दूर क्यों नहीं किया और ना ही अकाल पीड़ितों की कोई मदद की ?
6) अगर साई भगवान था तो उसने निर्दोष भारतीयों का खुन चूस रहे अंग्रेजों के खिलाफ़ आजादी की लड़ाई में कोई मदद क्यों नहीं की ? ( साई का जन्म 1834 और मृत्यु 1918 में हुई )
7) हिन्दू धर्म के सभी भगवान और उनके अवतारों का हमारे वेदों और ग्रन्थों में वर्णन है , अगर ये भगवान है तो इसका जिक्र कौन से वेद - पुराण में है
8) जो आदमी कभी भगवान राम की शिक्षाओं पर नहीं चला ,जो लोगों को हमेंशा कुरान का ज्ञान देता था , जिसे मरने के बाद भी मुस्लिम रीति-रिवाज के अनुसार दफ़नाया गया  उस आदमी के नाम के साथ राम कैसे जोड़ दिया गया ?
9) कहीं ये राम के नाम पर एकजुट हो रहे हिन्दुओं को सेक्युलरिस्म के दलदल में धकेलने की  राजनीतिक साजिश तो नहीं ?
10) साई में बारे में लोगों को पता कब चला ? अधिकतर लोगों को तो ये भी नहीं पता कि साई की मृत्यु हुए अभी 100 साल भी नहीं हुए हैं, साई के भक्त एक-दम से बढ गये जब साई के नाम पर व्यापार करने वालों ने साई की फ़िल्म और सीरियल बनाकर लोगों का ब्रेन-वाश करना चालु किया , क्या इससे साबित नहीं होता कि रुपये ऐंठने के लिये साई को बढावा दिया गया ?
मरने के बाद भी अरबों कमा रहा है यह शख्स
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